हम जिस डगर पर चले थे वो वहीं ख़त्म हुईं जहाँ से हम चले थे जब चले थे तो बहुत उम्मीदें संग ले चले थे पता न था कि इनका हासिल कुछ न होगा ...
हम जिस डगर पर चले थे
वो वहीं ख़त्म हुईं
जहाँ से हम चले थे
जब चले थे तो
बहुत उम्मीदें संग ले चले थे
पता न था कि
इनका हासिल कुछ न होगा
बेख़बर हम चल दिये थे
बीच डगर में पहुँचकर लगा
उलझ गयीं वो उम्मीदें
जो संग ले चले थे
अब तो हमको भी ख़बर नहीं
क्या सोचकर इस डगर चले थे
कभी न सोचा था
कि इस डगर चलेंगे
पर ख़ुदा का शुक्र है
कि जहाँ से चले थे वहीं लौट आये
समझ में आयी कुछ ऐसी बातें
जिन्होंने हमें जीना सिखा दिया
दर्द तो उठा था
सागर के तूफ़ाँ की तरह
पर संग कोई न था
शायद इसलिए वो दर्द थम गया
नयी डगर पर चलने से पहले
हज़ार बार सोचेंगे
शायद फिर कहीं ज़िंदगी
कुछ और न सिखा दे
Penned by: Pooja Prajapati
Penned: 10/05/2010
[Written after getting a teaching from my act]