एक ग़म दिया था तू ने ये ज़िंदगी, वो क्या कम था, जो साथी-संगी छीनकर दूसरा ग़म दे दिया क्या तुझको रत्ती भर भी एहसास है कि मैं भी एक इंसान...
एक ग़म दिया था तू ने ये ज़िंदगी,
वो क्या कम था,
जो साथी-संगी छीनकर दूसरा ग़म दे दिया
क्या तुझको रत्ती भर भी एहसास है कि
मैं भी एक इंसान हूँ...
जी तो सकती हूँ ये ज़िंदगी,
पर तेरे ग़मों को और सह नहीं सकती
थोड़ा सा दिया था वह भी छीन लिया मुझसे
ख़ता क्या हुई कि दामन ही छुड़ा लिया तूने
फ़रियाद क्या करूँ तुमसे
ग़म में शब्द भी धुँधले दिखायी देते हैं
क्या कहूँ तुमसे शब्द लड़खड़ाते हैं
क्या सोचू ख़्याल दिमाग़ में रुकते ही नहीं
क्या हुआ है मुझे इसका कुछ पता ही नहीं
एक ग़लती तो ख़ुदा भी माफ़ करता है
तू तो सिर्फ़ ज़िंदगी है, एक माफ़ी नहीं दे सकती
अगर नहीं दे सकती है तू माफ़ी
कम से कम सज़ा तो मत दे
ये क़हर तो मुझ पर मत ढा
तुझे ही जीती हूँ, इतना मुझे ख़राब मत बना
याद आती है जब
आँसुओं का सैलाब रुकता ही नहीं
ऐसा रहा अगर जारी,
डर लगता है कि कहीं दरिया ही न बन जाये -
मेरे इन बेकसूर आँसुओं से
कोई तो तरक़ीब बता, तू भी तो मेरी अपनी है
थोड़ी-सी ही सही, दोस्ती तो निभा
जी सकूँ ऐसा कुछ करके दिखा
उम्मीद पर दुनिया क़ायम है, मैं भी रह लूँगी
ज़िंदगी है ज़हर अगर तो ख़ुशी से पी लूँगी
पर बिछड़ों का ग़म थोड़ा-सा मुश्किल है भूल पाना
तेरा एहसान रहेगा अगर मुझे तू रास्ता दिखा दे
ज़िंदगी ख़ूबसूरत है –
ऐसा थोड़ा-सा सही पर एहसास दिला दे
एक मनचाहे दोस्त से तू मुझे मिला दे
जिससे बाँट सकूँ सारे ग़म –
ऐसा कोई मुझसे मिला दे
एहसान रहेगा तेरा मुझ पर,
उम्रभर तुम्हें चाहा करूँगी
शिक़ायत नहीं मुझे नये लोगों से नाराज़ हूँ
तो सिर्फ़ अपनी फूटी क़िस्मत से
लिखती नहीं मैं लिखना सिखा दिया मुझे
रोती नहीं मैं पर रुला दिया मुझे
ख़ुश हूँ मगर बहुत कुछ सिखा दिया मुझे
ज़िंदगी भर का साथी कोई नहीं होता
ऐसा भरोसा दिला दिया है मुझे
नये लोगों को अपनाऊँ ऐसा तूने कहा है
करूँगी मैं वैसा ही जैसा तू कहेगी
पर वादा कर कि फिर मेरा साथ देगी
मुझे अपने सबसे अच्छे स्वरूप से मिलवायेगी
ख़ुश रहना सिखायेगी तू
वादा कर मुझसे...
उमड़ते हुए दर्द को दिल में दबा रही हूँ
डर है कि ज़िंदगी ही ख़त्म न हो जाये
वादा कर मुझसे...
अपना तू मुझे तेरी ही हूँ मैं
वादा कर मुझसे...
Penned by: Pooja Prajapati
Penned: 15/04/2004
[Written after admission in 12th]